Sharda Sinha Last Rites: उत्तर प्रदेश और बिहार की मशहूर लोकगायिका जिन्हें “बिहार कोकिला” के नाम से जाना जाता है। आज वह हमारे बीच नहीं रही, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, मशहूर शारदा सिन्हा का 5 नवंबर की रात 9 बजकर 20 मिनट पर निधन हो गया। मिली जानकारी के मुताबिक उनकी तबियत बहुत दिन से ख़राब चल रही थी, छठ महापर्व के पहले दिन आई इस खबर ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे बिहार को शोक में डूबो दिया है।
Sharda Sinha Last Rites: छठ माता से जुड़ा था गहरा नाता
ऐसा कहा जाता है कि शारदा सिन्हा को पहचान छठ गीत से मिली थी और उनकी मृत्यु के बाद यह भी कहा जा रहा है कि, उनका छठ मां से कोई गहरा नाता जुड़ा हुआ था, जिसकी वजह से वह छठ पूजा के पहले दिन ही मां के पास चली गई। बता दें कि उनके गानों के बिना छठ का त्योहार अधूरा है और हमेशा रहेगा। अब उनके बिछड़ने से लोगों को ऐसा लग रहा है जैसे उनकी यादें और आस्था का एक हिस्सा छिन गया है।
Sharda Sinha Last Rites: बेटे अंशुमन ने दी मृत्यु की जानकारी
शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमन सिन्हा ने सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी मृत्यु की सूचना दी है। उन्होंने बताया कि उनकी मां का अंतिम संस्कार पटना के गुलबी घाट पर किया जाएगा, जहाँ एक महीने पहले उनके पिता का अंतिम संस्कार भी हुआ था। एक ही महीने में माता-पिता दोनों को खोना अंशुमन के लिए अत्यंत पीड़ादायक है। इस कठिन समय में भी, अंशुमन अपनी मां की इच्छाओं और परंपराओं का सम्मान करते हुए उन्हें विदा कर रहे हैं।
Sharda Sinha Last Rites: राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा अंतिम संस्कार
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर सुबह 9:40 की फ्लाइट से दिल्ली से पटना लाया जाएगा। ऐसा बता जा रहा है कि उनका शव कुछ समय के लिए उनके आवास पर रखा जाएगा ताकि उनके चाहने वाले उन्हें आखिरी बार देख और श्रद्धांजलि दे सकें।
इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा गुलबी घाट के लिए निकाली जाएगी, ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है कि, उनके जीवन का अंतिम संस्कार उनके चाहने वालों की भीड़ और उनकी अंतिम झलक पाने के लिए काफी भीड़ उमड़ सकती है, क्योंकि वह बिहार के लिए केवल एक गायिका नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा का प्रतीक थीं। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने बताया कि पटना में राजकीय सम्मान के उनका अंतिम संस्कार होगा।
Sharda Sinha Last Rites: उनके योगदान ने सांस्कृतिक धरोहर छोड़ी है
शारदा सिन्हा के गीतों ने ग्रामीण जीवन, आस्था, और परिवार की महत्ता को बड़े अनूठे तरीके से उभारा। ऐसा कहा जाता है कि, उनकी आवाज़ में एक सच्चाई और एक मधुर मिठास पाई जाती थी, जो सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती थी। उनके गीत, विशेषकर छठ पूजा के समय, बिहार के गाँव-गाँव में एक परंपरा बन गए थे,
जिनसे हर घर में खुशी और अपनापन महसूस होता था। शारीरिक रूप से भले ही वह अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़, उनके गीत, और उनकी यादें सदैव हमारे बीच मौजूद रहेगा। उनके योगदान ने जो सांस्कृतिक धरोहर छोड़ी है, वह आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने और प्रेरित करने का कार्य करेगी।