Kerala: हमारे देश में धर्म को लेकर अलग-अलग मान्यता है। यहां विविधता सिर्फ धर्म या खाने-पीने तक सीमित नहीं है। लेकिन पोशाक से लेकर कर्मकांड तक में अंतर बताया गया है। सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक कार्य करते समय पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी धारण करती हैं। पूजा पाठ के दौरान पुरुष हमेशा अपने वस्त्र ही धारण करते है। लेकिन आज आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता जा रहे हैै जहां पर पुरुष महिलाओं की साड़ी पहन कर पूजा करते है।
केरल के कोल्लम जिले में स्थित कोट्टं-कुलं-गार श्री देवी मंदिर में हर साल आयोजित होने वाला ‘चमया-विलक्कू उत्सव’ , शायद दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र ऐसा त्योहार है, जहां पुरुष पारंपरिक महिलाओं की पोशाक में तैयार होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. दो साल में यह पहली बार था जब जनता की भागीदारी के साथ चमयाविलक्कू उत्सव आयोजित किया गया था. कोरोना महामारी की वजह से साल 2020 और 2021 में वार्षिक उत्सव को रद्द कर दिया गया था।
Kerala: कब और कहां मनाया जाता है यह त्योहार ?
ये त्योहार सामान्यता मार्च या अप्रेल के महीने में होता है। जहां पुरुष सजधज कर इस फेस्टिवल में भाग लेते हैं। यहां छोटे बालक अपने अभिभावक के साथ और शादीशुदा आदमी अपनी पत्नी के साथ आते हैं। हर साल इस मंदिर में एक उत्सव का आयोजन होता है। ये फेस्टिवल 10 से 11 दिन तक मनाया जाता है। जिसमें आखिरी के दो दिन में यहां पुरुषों को महिलाओं का रूप धारण करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी की मूर्ति खुद प्रकट हुई थी। यह केरल का इकलौता मंदिर है, जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं है।
Kerala: किसलिए की जाती है पूजा ?
मंदिर के अधिकारियों के अनुसार प्री-कोविड समय में प्रतिभागियों (स्त्री बनने वाले पुरुष) की संख्या 3000-4000 तक थी. अब इस उत्सव के दौरान करीब 4000 से 5000 हजार पुरूष मंदिर में महिला का भेष लिए माता की आराधना करते हैं। पुरुष अच्छी नौकरी, सेहत और अपने परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।इस मौके पर पुरुष ठीक महिलाओं की तरह साड़ी और गहने पहनते हैं।
आमतौर पर मंदिर परिसर में ही परिवर के अन्य सदस्य या मेकअप आर्टिस्ट पुरुषों को तैयार करते हैं. मान्यता के अनुसार, पुरुष महिला के भेष में ही मंदिर में पूजा करते है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले पुरुष का फुल मेकअप किया जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें विग लगाकर महिलाओं की तरह सजाया जाता है। इतना ही नहीं पुरुष अपनी दाढ़ी और मूंछ को शेव करते हैं। यहां पुरुषों को महिलाओं का रूप धारण करने और पूरे सोलह श्रृंगार करने के बाद ही मंदिर में अनुमति मिलती है। इस मंदिर में आने वाले पुरुष साड़ी, जेवर, पूरे मेकअप और बालों में गजरा लगाकर आते हैं।
तैयार होने के बाद यात्रा निकाली जाती है, जिसमें पुरुष हाथ में पांच बत्ती से जलाया गया दीपक रखे हुए होते हैं. बता दें कि चमयाविलक्कु का शाब्दिक अर्थ है श्रृंगार प्रकाश यानी पांच बत्ती से जलाया गया दीप।
Kerala: जानें यहां की प्राचीन मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि महिलाओं का रूप धारण कर पूजा करने से उन्हें नौकरी, धन आदि की प्राप्ति होगी। यानी जो भी मनोकामना होगी, वह पूर्ण होगी। वैसे इस उत्सव के पीछे की कई स्थानीय लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। एक लोक कथा के अनुसार, एक बार कुछ चरवाहों ने एक नारियल को जंगल में मिले पत्थर पर मारकर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पत्थर से खून की बूंदे टपकने लगी। वे डर गए और गांववालों को बताया।
बाद में, स्थानीय लोगों ने ज्योतिषियों से परामर्श किया। ज्योतिषियों ने कहा कि पत्थर में वनदुर्गा की अलौकिक शक्तियां हैं और मंदिर के निर्माण के तुरंत बाद पूजा शुरू की जानी चाहिए। इसलिए गांववालों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया।
उन दिनों से केवल युवा लड़कियों को ही यहां फूलों की माला और दीपक जलाने की अनुमति थी। बाद में स्थानीय गाय चराने वाले पुरुष महिलाओं और लड़कियों रूप धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे। इस तरह पुरुषों और लड़कों को महिलाओं और लड़कियों के रूप में तैयार करने की परंपरा शुरू हुई.इन दिनों चमयाविलक्कू भी ट्रांसपर्सन का त्योहार है क्योंकि अब कई समुदाय के सदस्य उत्सव में शामिल होते हैं।