भारत रूस से कच्चा तेल आयात करने के मामले में जुलाई महीने में चीन से भी आगे निकल गया। आरटी डॉट कॉम ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। नई दिल्ली मास्को की ओर से दी गई छूट के कारण कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रही है क्योंकि रूस पर यूक्रेन से संबंधित प्रतिबंधों के कारण पश्चिमी देशों को खुले तौर पर ऊर्जा निर्यात नहीं कर पा रहा है।
व्यापार और उद्योग स्रोतों से जुटाए गए भारतीय शिपमेंट के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई महीने में भारत के कुल आयात में रूसी कच्चे तेल का 44% हिस्सा रहा। भारत प्रति दिन 2.07 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) कच्चे तेल का आयात कर रहा है, जो जून की तुलना में 4.2% अधिक है और एक साल पहले की तुलना में 12% अधिक है।
जुलाई में पाइपलाइनों और शिपमेंट के माध्यम से रूस ने चीन को कुल 1.76 मिलियन बीपीडी कच्चे तेल का निर्यात किया। चीनी सीमा शुल्क के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि चीनी रिफाइनरों द्वारा खरीद में यह गिरावट ईंधन के उत्पादन से कम लाभ मार्जिन के कारण दर्ज की गई है।
पश्चिमी देशों की ओर से मॉस्को पर प्रतिबंध लगाने और यूक्रेन में संघर्ष के जवाब में अपने ऊर्जा आयात में कटौती करने के बाद भारतीय रिफाइनर फरवरी 2022 से रियायती रूसी तेल की खरीद बढ़ा रहे हैं।
एक भारतीय रिफाइनिंग सूत्र ने रॉयटर्स को बताया, “रूसी तेल के लिए भारत की जरूरत तब तक बढ़ने वाली है जब तक कि प्रतिबंधों को और कड़ा नहीं किया जाता है।” भारत की बढ़ती खरीद रूसी ईएसपीओ (पूर्वी साइबेरिया-प्रशांत महासागर तेल पाइपलाइन) के प्रवाह को बदल रही है। पारंपरिक चीनी खरीदारों के साथ रूस अब दक्षिण एशिया के कच्चे तेल के बाजार पर भी फोकस कर रहा है।
शिपिंग डेटा के मुताबिक, भारत में ईएसपीओ आयात जुलाई में 188,000 बीपीडी तक पहुंच गया क्योंकि बड़े सुएजमैक्स जहाजों का उपयोग किया गया था। इराक पिछले महीने भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना रहा, इसके बाद सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का स्थान रहा। आंकड़ों से पता चला है कि मध्य पूर्व से भारत की कच्चे तेल की खरीद जुलाई में 4% बढ़ी, जिससे जून में भारत की कुल तेल खरीदारी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 38% से बढ़कर 40% हो गई।