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सरकार ने खत्म की कक्षा 5 और 8 की नो-डिटेंशन नीति: जानिए नई व्यवस्था!

भारत सरकार ने कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए लंबे समय से लागू नो-डिटेंशन नीति को खत्म कर दिया है। इस निर्णय के तहत अब स्कूल वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्रों को रोक सकते हैं। हालांकि, इसके साथ ही छात्रों को अतिरिक्त शिक्षा और दोबारा परीक्षा देने का मौका भी मिलेगा। यह बदलाव केंद्र सरकार के 3,000 से अधिक केंद्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूलों को प्रभावित करेगा।

नई नीति का उद्देश्य

स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने स्पष्ट किया कि यह बदलाव नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत किया गया है। इसका उद्देश्य केवल शिक्षा तक पहुंच बनाना नहीं, बल्कि छात्रों के सीखने के परिणामों में सुधार करना है। उन्होंने कहा कि नियमों में बदलाव से उन छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा जो पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं।

2010 के आरटीई अधिनियम में संशोधन

16 दिसंबर को किए गए संशोधन के तहत 2010 के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आरटीई) नियमों में बदलाव किया गया है। यह नीति संतुलित दृष्टिकोण अपनाती है, जो छात्रों को रोकने की अनुमति देती है लेकिन साथ ही सुधारात्मक निर्देश और पुनः परीक्षा के अवसर प्रदान करती है।

क्या है नई व्यवस्था?

नए नियमों के अनुसार, स्कूल अनुत्तीर्ण छात्रों को अतिरिक्त शिक्षा प्रदान करेंगे और दो महीने के भीतर दोबारा परीक्षा आयोजित करेंगे। शिक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह मूल्यांकन प्रक्रिया योग्यता-आधारित होगी और केवल याद करने या प्रक्रियात्मक कौशल पर आधारित नहीं होगी।

छात्र अधिकारों की सुरक्षा

इस नीति में छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया है। स्कूल कक्षा 8 की पढ़ाई पूरी करने से पहले किसी भी छात्र को निष्कासित नहीं कर सकते। इसके अलावा, स्कूल प्रमुखों को संघर्षरत छात्रों का विस्तृत रिकॉर्ड रखना होगा और विशेष सहायता कार्यक्रमों की देखरेख करनी होगी।

नो-डिटेंशन नीति का इतिहास

नो-डिटेंशन नीति को 2009 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत पेश किया गया था। यह नीति छात्रों को पढ़ाई छोड़ने से रोकने के लिए लागू की गई थी। 2010 से 2019 तक यह नीति लागू रही, लेकिन 2019 में इसे वैकल्पिक बना दिया गया। इसके बाद कई राज्यों ने इस नीति को खत्म कर दिया।

राज्यों की भूमिका

दिल्ली, ओडिशा, झारखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने पहले ही कक्षा 5 और 8 में फेल होने वाले छात्रों को रोकने की व्यवस्था लागू कर दी थी। यह बदलाव शैक्षणिक मानकों और शैक्षिक पहुंच के बीच संतुलन बनाने का संकेत देता है।

शिक्षकों और शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया

कई शिक्षकों ने इस बदलाव का स्वागत किया है। दिल्ली सरकार के एक स्कूल की शिक्षिका वैशाली ने कहा कि फेल होने का डर छात्रों को बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगा। वहीं, शिक्षाविद् एम.के. श्रीधर ने इसे संतुलित और प्रगतिशील कदम बताया।

नीति के आलोचक क्या कहते हैं?

कुछ विशेषज्ञों ने इस नीति की आलोचना की है। डीयू के शिक्षा विभाग की पूर्व प्रोफेसर पूनम बत्रा ने कहा कि नो-डिटेंशन का मतलब बिना मूल्यांकन के प्रमोशन नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह बदलाव छात्रों के स्कूल छोड़ने की दर बढ़ा सकता है।

संतुलित दृष्टिकोण की जरूरत

शिक्षाविदों का मानना है कि यह नीति तभी सफल होगी जब शिक्षकों को छात्रों के सीखने के अंतराल को पहचानने और उन्हें सुधारने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। परीक्षा से पहले एहतियाती उपाय किए जाने चाहिए।

अभिभावकों की राय

गुड़गांव पैरेंट्स एसोसिएशन के संस्थापक प्रदीप रावत ने कहा कि यह नीति छात्रों को अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अतिरिक्त प्रयासों के बाद भी परीक्षा में असफल होने वाले छात्रों को उसी कक्षा में रोकने में कोई बुराई नहीं है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

शिक्षा के क्षेत्र में हुए शोध बताते हैं कि नो-डिटेंशन नीति के कारण शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। छात्रों को बिना बुनियादी कौशल सीखे अगली कक्षा में प्रमोट किया गया, जिससे उच्च कक्षाओं में प्रदर्शन खराब हुआ।

सुधारात्मक निर्देश की भूमिका

नई नीति के तहत स्कूल प्रमुखों और कक्षा शिक्षकों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे छात्रों के सीखने के अंतराल की पहचान करें और उनकी प्रगति की निगरानी करें। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है।

आरटीई अधिनियम का उद्देश्य

आरटीई अधिनियम का मुख्य उद्देश्य 6-14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है। यह बदलाव सुनिश्चित करता है कि बच्चों को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित न किया जाए।

शिक्षकों की भूमिका

कक्षा शिक्षकों को छात्रों की प्रगति पर नजर रखने और उनके माता-पिता को मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी दी गई है। यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि छात्र पढ़ाई में पीछे न रहें।

नई नीति के लाभ

इस नीति से छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों पर शैक्षणिक उपलब्धि के लिए दबाव बढ़ेगा। यह बच्चों के समग्र विकास के लिए एक योग्यता-आधारित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करेगा।

चुनौतियां

इस नीति के कार्यान्वयन में कई चुनौतियां भी हैं। छात्रों को बार-बार कक्षा में रोकने से उनमें असफलता का कलंक और स्कूल छोड़ने का खतरा बढ़ सकता है।

संतुलित नीति की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा में संतुलन बनाए रखने के लिए स्कूलों को मूल्यांकन और सुधारात्मक निर्देश के बीच संतुलन बनाना होगा।

भविष्य की दिशा

नई नीति का उद्देश्य छात्रों को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित किए बिना शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। यह कदम छात्रों के सीखने के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

निष्कर्ष

केंद्र सरकार द्वारा नो-डिटेंशन नीति को खत्म करना शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति छात्रों को पढ़ाई में सुधार के लिए प्रेरित करेगी और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करेगी। हालांकि, इसका सफल कार्यान्वयन ही इस नीति की सफलता को सुनिश्चित करेगा।

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