मोहन भागवत: भारत की जीवन शैली को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की 19 प्रमुख जिम्मेदारियां
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को चिंचवाड़ में मोरया गोसावी संजीवन समाधि समारोह के उद्घाटन के अवसर पर प्रवचन दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की जीवन शैली को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के बारे में चर्चा की।
1. चिंचवाड़ की पवित्र भूमि
चिंचवाड़ की धरती को जागरण की भूमि के रूप में मोहन भागवत ने वर्णित किया। उन्होंने मोरया गोसावी की भूमि को आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत बताते हुए कहा कि यहां से उन्हें विशेष प्रेरणा मिलती है। यह भूमि संतों की उपस्थिति के कारण पवित्र और जागृत मानी जाती है।
2. भारतीय जीवन शैली की जिम्मेदारी
मोहन भागवत ने कहा कि भारत की जीवन शैली दुनिया के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करने योग्य है। भारतीय संस्कृति में निहित मूल्य, जैसे सद्भाव, संतुलन और सभी के कल्याण की भावना, पूरे विश्व को समृद्ध और शांतिपूर्ण बना सकते हैं।
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3. धर्म और समय का तालमेल
मोहन भागवत ने जोर देकर कहा कि धर्म हर व्यक्ति के जीवन का आधार है। इसे बदलते समय के साथ संरक्षित और जागृत रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की संरचना इस सिद्धांत पर आधारित है कि हम प्रकृति को “वापस देने” के महत्व को समझें और उसे अपनाएं।
4. संतुलन और धैर्य का महत्व
मोहन भागवत ने कहा कि विश्व व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए संतुलन और धैर्य बनाए रखना हर किसी की जिम्मेदारी है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने की परंपरा का पालन किया है। उन्होंने इसे “वापस देना” सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया।
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5. सनातन धर्म की विशेषताएं
मोहन भागवत ने कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में विश्व में कई विचारधाराओं का प्रभाव रहा है, जिनसे संघर्ष भी बढ़ा है। ऐसे में भारतीय सनातन धर्म, जो आध्यात्मिकता और भौतिक जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करता है, विश्व के लिए एक समाधान प्रस्तुत करता है।
6. चिंचवाड़ का ऐतिहासिक महत्व
मोहन भागवत ने चिंचवाड़ के ऐतिहासिक महत्व को भी रेखांकित किया। यह भूमि संत तुकाराम, छत्रपति शिवाजी महाराज और रामदास स्वामी जैसे महापुरुषों की उपस्थिति से पवित्र हुई है। इन महापुरुषों के विचार और कार्य आज भी समाज को प्रेरणा देते हैं।
7. भारतीय संस्कृति का वैश्विक योगदान
मोहन भागवत ने कहा कि भारत का उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के कल्याण के लिए काम करना है। उन्होंने जोर दिया कि भारतीय संस्कृति में सभी के कल्याण और प्रगति की भावना निहित है।
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8. धर्म की सार्वभौमिकता
उन्होंने कहा कि धर्म केवल एक व्यक्तिगत आस्था नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक मार्ग है। भारतीय धर्म की शिक्षा विश्वव्यापी होनी चाहिए ताकि पूरी दुनिया इसका लाभ उठा सके।
9. मंगलमूर्ति का आशीर्वाद
मोहन भागवत ने कहा कि मोरया गोसावी की धरती से सभी को मंगलमूर्ति का आशीर्वाद मिलना चाहिए। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे अपने धर्म और संस्कृति के लिए योगदान दें।
मंगलमूर्ति के आशीर्वाद की महत्ता
10. प्रकृति और धर्म का सामंजस्य
भारतीय धर्म की संरचना प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित है। भागवत ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने यह समझ लिया था कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर ही हम एक संतुलित और सुखी जीवन जी सकते हैं।
11. संघर्षमय विश्व व्यवस्था
मोहन भागवत ने कहा कि वर्तमान विश्व व्यवस्था संघर्ष पर आधारित है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में निहित अपनेपन की भावना ही ब्रह्मांड का आधार है और यही विश्व को शांति प्रदान कर सकती है।
विश्व व्यवस्था में भारतीय संस्कृति
12. भारतीय संस्कृति की प्राचीनता
मोहन भागवत ने भारतीय संस्कृति की प्राचीनता और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह संस्कृति न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मार्गदर्शक बन सकती है।
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13. संतों की भूमिका
मोहन भागवत ने संतों की भूमिका पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि संतों ने भारतीय समाज को सही दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
14. धर्म और आधुनिकता का सामंजस्य
उन्होंने कहा कि धर्म और आधुनिकता के बीच सामंजस्य स्थापित करना आज के समय की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में यह सामंजस्य सहज रूप से दिखाई देता है।
15. जीवन शैली का प्रसार
भागवत ने कहा कि भारतीय जीवन शैली को दुनिया के सामने प्रस्तुत करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह जीवन शैली न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामूहिक कल्याण को भी सुनिश्चित करती है।
16. शिक्षा का महत्व
भागवत ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को समाहित करना चाहिए। इससे नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने में मदद मिलेगी।
17. विश्व कल्याण का लक्ष्य
भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति का अंतिम लक्ष्य पूरे विश्व का कल्याण है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी भूमिका को समझते हुए दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए।
विश्व कल्याण और भारतीय संस्कृति
18. सामाजिक समरसता
भागवत ने सामाजिक समरसता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा सभी को साथ लेकर चलने की शिक्षा दी है।
19. सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
भागवत ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। यह धरोहर हमारी पहचान है और इसे विश्व के सामने प्रस्तुत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का संदेश स्पष्ट था कि भारत को अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को संजोते हुए दुनिया का मार्गदर्शन करना चाहिए। भारतीय जीवन शैली, जो संतुलन, सद्भाव और सबके कल्याण पर आधारित है, आज के संघर्षमय विश्व में शांति और समृद्धि ला सकती है।