Indian Army: भारतीय सेना बॉर्डर क्षेत्रों में फॉरवर्ड पोस्ट तक सैनिकों को सामान पहुंचाने के लिए एनिमल ट्रांसपोर्ट पर निर्भरता को कम करने के लिए पूरी तरफ से जुटी हुई है। जानकारी के लिए बता दें कि अब सेना रोबॉटिक खच्चर और लॉजिस्टिक ड्रोन की ओर आगे बढ़ रही है, जो इस कार्य को और अधिक प्रभावी बना सकें। इसके साथ ही, बॉर्डर इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी लगातार सुधार किया जा रहा है।
भारतीय सेना पर्वतीय इलाकों में अंतिम मील की कनेक्टिविटी के लिए धीरे-धीरे एनिमल ट्रांसपोर्ट की जगह ट्रक, ऑल-टेरेन व्हीकल और रग्ड (Rugged) टेरेन व्हीकल्स इत्यादि का प्रयोग कर रही है, जिससे कि कम समय के अन्दर सैनिकों को आवश्यक सामग्री बहुत जल्द और सुरक्षित तरीके से पहुंचाई जा सके।
Indian Army: कार्गो ड्रोन लेने की दिशा में काम
भारतीय सेना के सूत्रों के मुताबिक, बॉर्डर इलाकों में जिस तरह की भौगोलिक स्थिति और टेरेन है, उसमें एनमिल ट्रांसपोर्ट ने अहम रोल निभाया है। जैसे-जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बनता जाएगा, वैसे-वैसे सेना एनिमल ट्रांसपोर्ट को कम किया जाएगा। कार्गो ड्रोन लेने की दिशा में भी काम हो रहा है। तब ड्रोन के जरिए भी सैनिकों तक सामान पहुंचाया जा सकेगा। रोबॉटिक म्यूल (खच्चर) के लिए रिसर्च और डिवेलपमेंट का काम हो रहा है और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के साथ मिलकर रोबॉटिक खच्चर बनाया जा रहा है।
Indian Army: रोबॉटिक खच्चर की कितनी जरूरत ?
सूत्रों के मुताबिक, इस रोबॉटिक खच्चर का प्रोटोटाइप तैयार हो गया है और इसे गर्मी के दिनों में अच्छे से टेस्ट किया गया है। लेकिन इसका ट्रायल बर्फीले इलाकों में होना अभी बाकी है। इसके साथ ही हर तरह की टेरेन में भी ट्रायल किया जाएगा। सेना को इस तरह के 100 रोबॉटिक खच्चर की जरूरत है। सेना ने पिछले साल जनवरी में इसके लिए आरएफपी यानी रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल भी जारी किया है। उसमें कहा गया कि सेना रोबोटिक खच्चर स्वदेशी कंपनियों से ही लेगी। सेना को चार पैरों वाले रोबॉट की जरूरत है जो अलग-अलग टेरेन में जा सके।
Indian Army:क्या है रोबॉटिक खच्चर की खासियत ?
इन रोबॉटिक खच्चर को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि जिससे वे अपनी रक्षा खुद कर सकें साथ ही किसी भी बाधा को पार कर सके। विस्तार से अगर जानने की कोशिश करें तो, रोबॉटिक खच्चर ऐसा होना चाहिए जो माइनस 20 से प्लस 45 डिग्री तक आसानी से ऑपरेट कर सके। इसकी बैटरी इतनी हो कि यह कम से कम 3 घंटे लगातार चल सके। अभी हाई एल्टीट्यूट एरिया में सेना रासन पहुंचने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल करती है।
जो सेना के एनिमल ट्रांसपोर्ट का बड़ा हिस्सा हैं। सेना को उम्मीद है कि साल 2030 तक एनिमल ट्रांसपोर्ट घटकर 50-60 पर्सेंट तक रह जाएगा। अभी बॉर्डर इलाकों में सेना की कई ऐसी पोस्ट हैं, जहां तक सामान पहुंचाने के लिए एनिमल ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है।
Indian Army:एनिमल ट्रांसपोर्ट ही सबसे बड़ा सहारा
एनिमल ट्रांसपोर्ट को कम करने के लिए काम किया जा रहा है, लेकिन भविष्य यानी आगे तक कही न कही एनिमल ट्रांसपोर्ट की जरूरत बनी रहेगी। टफ टेरेन तो इसकी वजह है ही साथ ही मौसम भी एक बड़ा कारण है। हाल ही में जब सिक्किम में बादल फटने से सड़कें बह गई और फिर खराब मौसम में हेलिकॉप्टर भी काम नहीं कर पाते।
ऐसे में एनिमल ट्रांसपोर्ट ही सबसे बड़ा सहारा होता है। नई टेक्नॉलजी और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ इसकी संख्या कम जरूर होगी, लेकिन ऐसे वक्त में जब प्रकृति अपना भयावह रूप दिखाती है, तब एनिमल ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल अहम हो जाता है।